धुम्रपान मनुष्यों के लिए अभिशाप क्यूँ ?


धुम्रपान के बारे में जैसा कि सब को पता है ,की यह सबसे हानिकारक एवं धीमा जहर है जो मनुष्यों को दीमक के तरह धीरे-धीरे खाता है |
                                 इसकी शुरुआत हमारे देश में अंग्रेजी की पढाई शुरू होने(19विं सदी) के समय से ही हुई है अन्यथा यह केवल देवताओं,असुरों एवं राजा-महाराजाओं का हमसफर था | कुछ लोग कहते हैं कि वे शिवभक्त हैं इसीलिए गाजा,भांग,अफीम आदि नशीली पदार्थों का सेवन करते हैं | लेकिन उनको यह पता नही है कि शिवभक्त शिव जोगी,बहुरहबा इत्यादि होते हैं, जिनका अपना परिवार नही होता है, जिनके पीछे कोई रोने वाला नही होता है |
             आप को भी अगर सही में शिवभक्त बनना है तो अपने परिवार को छोर कर शिवभक्ति में लीं हो जाइए | फिर देखिए कौन आपको रोकता है इन सब कर्मों से, आप को भांग,गाजा,अफीम आदि का सेवन करिए या फिर भस्म लगाइए अपने पुरे शरीर पर किसी को कोई फर्क नही पड़ेगा, बल्कि आपको देखकर या तो आपको प्रणाम करेंगे सब या फिर भोलेनाथ को याद करेंगे, उनकी जय-जयकार करेंगे | और अगर आप ऐसा नही कर सकते अर्थात आप अपने परिवार को नही छोड़ सकते तो कृप्या शिवभक्ति को अपनी शक्ति या बहाना बना कर इन्हें बदनाम ना करें, चूँकि ऐसा करने से आप खुद ही पाप के भागीदार बनेंगे | तो आइए, सबसे पहले जानते हैं कि धुम्रपान अथवा नशाखोरी मानव के लिए अफिशाप क्यूँ है, इस से क्या सब हानि है :-
1.यह धीमा जहर जो है, मनुष्यों को धीरे-धीरे मौत के मुँह की ओर धकेलने वाला |

2.इसका अति सेवन करने से मनुष्य अपना आपा खो बैठता है और अपने परिवार के साथ नही चाहते हुए भी गलत व्यवहार कर बैठता है |

3.अति सेवन के कारण मनुष्य कहीं सड़क के किनारे तो कहीं नाले के किनारे या फिर गन्दी नालियों में लोटता रहता है, जो की रोज का नजारा बन गया है |

4.अच्छे-अच्छों को यह कंगाल बना देता है, जब आप इस से अपना गहरा रिश्ता जोड़ लेते हैं और हाँ, जोड़ेंगे क्यों नही यही आप को छूटने ही नही देता है | इसका कथन है कि अगर एक बार जो पकड लिया हाथ तो बिना बर्बाद किये छोड़ेंगे नही |
                अब आप लोग सोच रहे होइएगा की शायद लेखक बेचारा इन सबों का सेवन नही करता है इसीलिए बोल रहा है | जी हां, आप गलत थोड़े ही सोचेंगे, पढ़े-लिखे जो ठहरे | तो भाई जब आप पढ़े-लिखे भी हैं और सोच भी सकते हैं तो क्यों ना लेखक की तरह ही सोचें | सबसे पहले मैं आप को अपने बारे में बताना चाहूँगा कि मैं क्या सोचता हूँ और क्या चाहता हूँ |
  1. मैं(सौरभ) सोचता क्या हूँ :- तो दोस्तों मैंने देखा की जब लोग नशा करने से अपना सब कुछ खो देता है, बड़े-छोटों का ख्याल करना भूल जाता है | अपने परिवार के साथ ऐसा व्यवहार कर बैठता है जो की वह सोचा भी नही रहता है चाहना तो दूर | ये तो मैंने शराब और शराबीयों के बारे में बताया | अब दूसरा लीजिए, छोटा सा और कम खर्चीला पान-गुटखा,खैनी-तम्बाकू, बीडी-सिगरेट | मैंने देखा कि मात्र पांच रुपया का लोग पान और  गुटखा खाकर ईधर-उधर थूकता रहता है, जीस के लिए उन्हें कई बार बुरा-भला भी सुनना पर जाता है और तो और मुम्बई जैसा शहरों में थूकने का भी जुर्माना भरना पर जाता है | अब करे भी क्या इन सब का आदि जो हैं | जो लोग आदि नहीं है वो अपने आप को मेरे category में सामिल होने का प्रयास कर रहे होंगे की शायद लेखक भी ऐसा ही होगा की कभी-कभार मौका मिलने या फिर मुफ्त में मिल रहा होगा तो इन तमाम बुरी चीजो में से कुछ का सेवन कर लेते होंगे | जी नहीं, ऐसा कुछ भी नही है | मैना बस दो ही तरह से काम करता हु या तो बहुत अच्छे से या फिर नही ही करता हूँ | अब यह पढाई तो है नही न, जो की अच्छे से किया जाय | मेरे को ना चाय में भी हानि दिखी तो मैंने चाय भी खानी छोड़ दी | चाय वो भी खानी कितनी अजीब सी लग रही है सुनाने में सही है दोस्त मै ना बच्चे में बिस्कुट को चाय के साथ खाया करता था, हुई ना बात तो दोनों एक ही है | खैर, मैं एक अच्छे परिवार से बिलोंग करता हूँ जिसमे बच्चों को ना तो चाय पिने को मिलती है और ना ही एक रुपया भी |
                        मैं जब भी अपने पापा से रुपया माँगा वो शिर्फ एक रुपया, क्योंकि ज्यादा तो मिलने का चांस ही नही बनता था | मैंने वो भी रुपया इसलिए माँगा की मेरे दोस्तों को जैसे-तैसे रुपया तो मिल जाती थी और वो जब भी कुछ खरीदता था तो मेरे को भी खिला देता था मगर मैं ऐसा नही कर पाता था | दर थी कि कहीं दोस्त मेरे को कहीं स्वार्थी ना समझ ले दोस्ती ख़तम होने की बात तो मेरे दिमाग में ना आती थी और ना ही ऐसी बात थी | क्योंकि मेरे को पता था कि दो ही तरह के बन्दों के पास दोस्त होते हैं पहला वो जो खर्चीला हो ,दूसरा जो पढने में तेज हो | मैं तो खर्चीला था ही नही आगे इसका भी कारन पता चल जायेगा हाँ, मगर मैं तेज जरुर था | इसीलिए, मेरे पास अगर साल भर एक-दो दोस्त ही रहते थे ,मगर परीक्षा के समय बहुत सारे दोस्त हो जाते थे | कहाँ मई अपनी जीवनी बताने में खो गया चलिए वापस चला जाय | हाँ, मैंने जब अपने पापा से एक रुपया माँगा तो वो बोले कि क्या करोगे ? मैं झूठ बोला कि वो चौकलेट खरीदनी है , झूठ इसलिए कि मैं अपने पापा से बहुत ही डरता हूँ | पास में ही दूकान थी वो ले गए और पांच रूपये का कह्रिड दिए बोले भाई को भी दे देना(मेरा एक छोटा भाई भी है ) | लेकिन मैंने उन्हें अपने भाई और दोस्तों में बाँट दिया मगर अच्छा नही लगा | वो लोग मन चाहा चीज खरीदते थे | मैंने उस दिन से पापा से रुपया मांगना ही छोड़ दिया |
    जिसका परिणाम है कि मैं आज गलती से भी सुपारी तक नही खाता हूँ | सुपारी इसलिए नही, की कहीं मेरे दांतों में काला-काला ना लग जाए और चाय इसलिए नही की चाय पिने वालों को ही ज्यादा गैस्टिक प्रॉब्लम हो जाती है |

  1. मैं(सौरभ) चाहता क्या हूँ :- मैं यह चाहता हूँ की आप भी मेरी तरह गलत कामों में बस अपनी फायदा ही सोचें | ऐसा करने से बिना कुछ किये ही बहुत ज्यादा फायदा हो जायेगा |
                   खैर आप कम-से-कम जो श्री नितीश कुमार जी(माननीय मुख्यमंत्री) शराब के ठेके खुलवाने के कारण बहुत ज्यादा बदनाम हो गए थे और जिसका परिणाम वो चुनाव के समय में भुगत लिए, उनकी तो सुने | अगर नही भी सुनियेगा तो प्रशासन और आपके घर की प्रशासन अर्थात आपकी बीबी आपको बकसने वाली नही है |
                   हे! स्त्रियों, अगर मेरे जगाने-समझाने से, ये नशाखोर लोग अगर नही सुधारते हैं तो अब आपलोगों को जागने की जरुरत है | गलती करे ये लोग और परिणाम भुगते आप लोग ये कब तक चलेगा | उठिए-जागिये और इनका सामना कीजिये | अपने-आप सभी सुधर जायेंगे |

लेखक की ओर से विशेष आग्रह :- कृप्या, नशापान ना करें और तो और खाश कर होली-पर्व के अवसर पर भी नहीं | यह आपके लिए एवं आपके परिवार के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक है | अगर आप चाहते हैं कि आप के परिवार के सदस्य अथवा दोस्त लोग नशापान छोड़ दें, तो कृप्या उनको एक बार मेरा यह लेख जरुर पढने के लिए मेरी ओर से आमंत्रित कीजिएगा |

                          ||धन्यवाद||
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About सौरभ मैथिल

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