होलिका-दहन



होलिका-दहन मुख्य रूप से विष्णु भक्त प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका अर्थात हिरनकश्यप की बहन की कथा है | जैसा कि आप जानते ही हैं हिरनकश्यप ने अपने को भगवान साबित करने पर तुला था | उसने अपनी पूजा करवानी शुरू कर दी थी, वह विष्णु भक्तों को प्राणदंड दे देता था |
                   ऐसा गलत काम वह अपने गुरु शंकराचार्य के कहने पर कर रहा था | क्योंकि, भगवान विष्णु ने हिरनकश्यप के भाई हिरण्याक्ष की हत्या वराह अवतार लेकर कर दिये थे | इसके पीछे भी एक महान कथा है जो कि वराह अवतार के वर्णन के द्वारा बतलाई जा सकती है | परन्तु हम तो होलिका-दहन के बारे में बतलाना चाहते है | फिर भी हिरण्याक्ष वध का कारन जानते चलें |
                                हिरण्याक्ष ने ब्रम्हपुत्री पृथ्वी का हरण कर पाताल में छिपा दिया था | भगवान विष्णु ने पृथ्वी के प्रार्थना एवं अपने संतानों जिनका वे पालन करता हैं मानव की रक्षा करने के लिए वराह अवतार ले कर पृथ्वी को पटल से बाहर निकाले और हिरण्याक्ष का वध किये | इन्हीं सब कारणों से क्रुद्ध एवं गुरु शंकराचार्य के कहने पर हिरनकश्यप ने भगवान विष्णु की पूजा बंद करवा कर अपनी पूजा चालू करवाने पर टूल गया |
              वह जब गुरुदेव के आज्ञा से तपस्या करने के लिए हिमालय पर गया तो उस समय उसकी पत्नी गर्भवती थी | जिसके गर्भ में प्रह्लाद पल रहा था, देवराज इंद्र ने सबसे पहले प्रह्लाद की हत्या गर्भ में ही करनी चाही परन्तु माता लक्ष्मी के कहने पर भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा कर दी |
                      तत्पश्चात इंद्र हिरनकश्यप की पत्नी अर्थात प्रह्लाद की मा का अपहरण कर लिए और देवलोक ले जाने लगे | तभी महर्षि नारद ने उनके रस्ते में आकर देवराज इंद्र को भगवान विष्णु के क्रोद्ध के प्रति सचेत कर, उनसे उन्हें छुरा लिए और अपने आश्रम में ले कर चले गए और प्रह्लाद को गर्भ से ही ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का मन्त्र सुनाने एवं सिखाने लगे |
                        फलस्वरूप असुर परिवार में जन्म लेने के पश्चात भी प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त निकल गया | हिरनकश्यप ने भुत प्रयत्न किया कि उसका पुत्र उसे भगवान मान ले ,परन्तु प्रह्लाद ने ऐसा नही किया | उसने प्रह्लाद को कठोर से कठोर यातनाएं दिया परन्तु प्रह्लाद अपने हाथ पर अडिग रहा | अन्त में हिरनकश्यप ने उसे भी मृत्युदंड देने का भी बहुत सारा प्रयत्न किया फिर असफल रहा | तत्पश्चात उसने अपनी बहन होलिका जिसे अग्नि देव से वर प्राप्त था कि उसे आग कभी-भी हानि नही पहुंचा सकती है को बुलाया | वह आई और प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर गयी |
                            प्रह्लाद के ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का मन्त्र जाप के कारन उस रोज उल्टा ही हो गया | होलिका जल कर राख हो गयी और प्रह्लाद ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का मन्त्र जाप करता हुआ आग से बाहर जिन्दा बचकर आ गया |
               उसी दिन से होलिका दहन, होली से एक दिन पूर्व मनाया जाने लगा | जो कि होलिका की याद दिलाती है जो वरदान प्राप्त कर के भी पाप-पूर्ण कार्य करने के कारण जल कर राख हो गयी |

इस से हमें सबक लेना चाहिए की कभी भी गलत काम नही करना चाहिए, ईश्वर के भक्तों को सदा साथ देना चाहिए न कि उसे दुःख पहुँचाना चाहिए |
|| धन्यवाद ||

  होलिका-दहन की बहुत-बहुत बधाई | होली-पर्व की भी बहुत-बहुत बधाई |
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About सौरभ मैथिल

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